Nirjala Ekadashi 2025 का व्रत 6 जून, शुक्रवार को रखा जाएगा। यह हिंदू धर्म में सबसे कठिन और पुण्यकारी व्रतों में से एक है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा के साथ भक्त जल सहित सभी प्रकार के भोजन का त्याग करते हैं।
मुख्य विवरण:
- तिथि: 6 जून 2025, 2:18 AM बजे से 7 जून 2025, 4:50 AM बजे तक।
- पारण का समय: द्वादशी तिथि पर सूर्योदय के बाद।
- महत्व: ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी पर रखा जाने वाला यह व्रत अनंत पुण्य और मोक्ष प्रदान करता है।
व्रत के दौरान भक्त भगवान विष्णु की आराधना करते हैं और व्रत नियमों का पालन कर जीवन में शुभ फल प्राप्त करते हैं।
- मुख्य बिंदु:
इस ब्लॉग में हम Nirjala Ekadashi की कथा, व्रत विधि, शुभ मुहूर्त और इससे जुड़े लाभों की जानकारी साझा कर रहे हैं। यह व्रत न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि आत्मिक शुद्धि और पुण्य लाभ के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
- कथा: निर्जला एकादशी की पौराणिक कथा भक्तों को भगवान विष्णु के प्रति श्रद्धा और विश्वास की प्रेरणा देती है।
- महत्व: यह व्रत मोक्ष प्राप्ति और अनंत पुण्य प्रदान करने वाला माना गया है।
- व्रत विधि: इस दिन जल और अन्न का पूर्ण त्याग कर भगवान विष्णु की पूजा की जाती है।
- शुभ मुहूर्त: व्रत की तिथि 6 जून की 2:18 AM बजे से 7 जून की 4:50 AM बजे तक है।
- लाभ: व्रत करने से पवित्रता, आशीर्वाद, और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

Nirjala Ekadashi 2025 क्या है?
हिंदू धर्म में एक अत्यंत कठिन और महत्वपूर्ण व्रत है, जिसमें भक्त अन्न-जल का त्याग करते हुए भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। यह व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए है जो अन्य एकादशियों का पालन नहीं कर पाते। इस दिन जल का त्याग करके पूजा करने से 12 महीनों की सभी एकादशियों के व्रत का पुण्य मिलता है।
महत्व और फल
Nirjala Ekadashi का महत्व अत्यधिक है, क्योंकि इसे करने से पूरे वर्ष की 24 एकादशियों के व्रत का पुण्य प्राप्त होता है। यह विशेष रूप से उन भक्तों के लिए लाभकारी है जो हर एकादशी का व्रत नहीं कर सकते। इस व्रत में अन्न और जल का त्याग किया जाता है, और भगवान विष्णु की पूजा, कथा श्रवण और दान-पुण्य किया जाता है।
कहा जाता है कि इस व्रत को करने से मृत्यु के समय यमदूत नहीं आते, बल्कि भगवान विष्णु के दूत भक्त को विष्णु धाम ले जाते हैं।
भीमसेन ने इस व्रत को किया था और उन्हें पूरे वर्ष की 24 एकादशियों का पुण्य प्राप्त हुआ। इस कारण इसे “भीमसेनी एकादशी” और “पांडव एकादशी” भी कहा जाता है।
इस व्रत का पालन करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।
Ekadashi का पारण समय
निर्जला एकादशी का पारण 7 जून को होगा। पारण से पहले हरि वासर का समय समाप्त होना चाहिए, क्योंकि इसके बाद ही पारण करना शुभ माना जाता है। व्रतधारकों को शुभ मुहूर्त का पालन करते हुए पारण करना चाहिए, ताकि व्रत का संपूर्ण फल प्राप्त हो सके।
आवश्यक सामग्री
निर्जला एकादशी के व्रत और पूजा के लिए निम्नलिखित सामग्री आवश्यक होती है:
- पूजा सामग्री:
- भगवान विष्णु की मूर्ति/चित्र
- चौकी और पीला/सफेद वस्त्र
- गंगाजल और शुद्ध जल
- तुलसी के पत्ते
- ताजे फूल और माला (गेंदे, गुलाब, कमल)
- अगरबत्ती और धूप
- घी/तेल का दीपक
- चंदन और कुंकुम
- अक्षत (चावल)
- पंचामृत (घी, शक्कर, दूध, दही, शहद)
- सुपारी, पान का पत्ता, लौंग-इलायची
- फलों का भोग (आम, केला, सेब, अंगूर)
- मिठाई और मिष्ठान्न (लड्डू, पेड़ा)
- व्रत सामग्री:
- पीले वस्त्र
- पूजा की चौकी
- भगवान विष्णु का आसन
- मंत्र जप माला (तुलसी या रुद्राक्ष माला)
- ध्यान और ध्यान सामग्री
- दान और पुण्य सामग्री:
- वस्त्र दान (ब्राह्मणों और गरीबों को)
- अन्न और अनाज (गेहूं, चावल, जौ)
- पानी के घड़े
- ताम्र और पीतल के बर्तन
- धन-दक्षिणा
- वृक्षारोपण का सामान
इन सभी सामग्रियों का उपयोग व्रत, पूजा, और दान-पुण्य के लिए करें, जिससे पुण्य और आशीर्वाद प्राप्त हो।
Nirjala Ekadashi 2025 व्रत की विधि
व्रत हिंदू धर्म में सबसे कठिन व पुण्यदायी माना जाता है, जिसमें अन्न और जल का त्याग किया जाता है। इस व्रत से पूरे साल की 24 एकादशियों का पुण्य प्राप्त होता है। इसे सही ढंग से करने के लिए निम्नलिखित विधियों का पालन करें:
- दशमी तिथि की तैयारी:
- व्रत से पहले हल्का सात्विक भोजन करें।
- तामसिक भोजन से बचें और मन को शांत रखें।
- व्रत का संकल्प:
- सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और भगवान विष्णु का ध्यान करें।
- व्रत का संकल्प लेकर भगवान विष्णु के सामने हाथ जोड़ें और शुद्ध जल, गंगाजल, धूप, दीप, फल, फूल और तुलसी पत्र रखें।
- पूजा विधि:
- भगवान विष्णु की पूजा करें और विष्णु सहस्त्रनाम, भगवद गीता का पाठ करें।
- “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें।
- दिनभर भजन, कीर्तन और ध्यान में व्यस्त रहें।
- व्रत का पालन:
- अन्न और जल का त्याग करें।
- दिनभर भगवान के नाम का जाप करें और धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करें।
- दान-पुण्य:
- गरीबों और ब्राह्मणों को अन्न, वस्त्र और दक्षिणा का दान करें।
- व्रत के नियम:
- झूठ, क्रोध और बुरी आदतों से बचें।
- रात्रि जागरण करें और भगवान विष्णु के भजन और कीर्तन में भाग लें।
- द्वादशी का पारण:
- द्वादशी तिथि पर सूर्योदय से पहले स्नान करें और ब्राह्मणों को भोजन कराएं।
- इसके बाद व्रत तोड़कर भोजन ग्रहण करें।
नोट: निर्जला एकादशी का व्रत शुद्ध आस्था और पवित्रता से करना चाहिए, ताकि इसका पूर्ण फल प्राप्त हो सके।
Nirjala Ekadashi 2025 Vrat Katha
महाभारत में श्री भीमसेन ने एकादशी के व्रत को लेकर एक कहानी सुनाई है। उन्होंने अपने पितामह भीष्म से कहा कि वह एकादशी के दिन अन्न नहीं खा सकते। इसके जवाब में व्यास जी ने बताया कि यदि कोई मनुष्य प्रत्येक मास की एकादशी पर उपवास करता है, तो उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है। भीमसेन ने व्यास जी से एक ऐसा व्रत पूछा, जिसे वह पूरी श्रद्धा से कर सकें और जो उनके लिए मुक्ति का कारण बने।
तब श्री व्यास जी ने निर्जला एकादशी का व्रत बताया, जो ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष में होती है। इस दिन न तो भोजन करना चाहिए और न ही जलपान। इस व्रत में स्नान और आचमन में भी 6 मासा से अधिक जल का प्रयोग नहीं करना चाहिए। सूर्यास्त से सूर्योदय तक जल का सेवन नहीं करना चाहिए। द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन और दान देकर स्वयं भोजन करना चाहिए। इस व्रत का फल पूरे वर्ष की सभी एकादशियों के बराबर होता है।
श्री व्यास जी ने बताया कि यह व्रत भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त करने का सबसे सरल और प्रभावी तरीका है। इस दिन भगवान विष्णु के मंत्र ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ का उच्चारण करना चाहिए। इस व्रत को करने से मनुष्य के सारे पाप समाप्त हो जाते हैं और वह स्वर्ग जाता है।
जो लोग इस दिन अन्न खाते हैं, उन्हें पापी माना जाता है, और वे नरक में जाते हैं। इस व्रत के द्वारा ब्रह्मा हत्या, मद्यपान, चोरी, गुरु के साथ विश्वासघात, और झूठ बोलने के पाप समाप्त हो जाते हैं।
कुंती पुत्र, जो भी इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करते हैं, उन्हें भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए, गोदान और ब्राह्मणों को दक्षिणा देना चाहिए। इस दिन का उपवास करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है और समस्त पाप समाप्त हो जाते हैं।
अंततः, भीमसेन ने निर्जला एकादशी का व्रत श्रद्धा पूर्वक किया, जिससे उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति हुई। यह व्रत पांडवों का व्रत भी कहलाता है और हर व्यक्ति को इस व्रत को पूरी श्रद्धा से करना चाहिए।

Ekadashi व्रत का फल: संक्षिप्त विवरण
- धन और समृद्धि: व्रत से श्रद्धालु को भगवान विष्णु की कृपा से धन, सुख और समृद्धि प्राप्त होती है। यह व्रत जीवन में सभी कठिनाइयों को दूर करता है।
- पारिवारिक सुख: इस व्रत से घर में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है। परिवार के सभी सदस्य स्वास्थ्य और सुख से युक्त होते हैं।
- यमदूतों का भय समाप्त: व्रत करने से यमराज का भय समाप्त हो जाता है। व्रती मृत्यु के बाद विष्णु लोक में स्थान पाते हैं।
- स्वर्ग प्राप्ति: इस व्रत से व्यक्ति को समस्त तीर्थों का पुण्य प्राप्त होता है और स्वर्ग में स्थान सुनिश्चित होता है।
- कष्ट और दरिद्रता का नाश: यह व्रत जीवन की दरिद्रता और कष्टों को दूर करता है, जिससे व्रती को सुख-शांति और समृद्धि मिलती है।
व्रत करने से अद्भुत लाभ और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। इसे पूरी श्रद्धा और निष्ठा से करना फलदायी होता है।
निर्जला एकादशी के लाभ
- समस्त पापों का नाश: निर्जला एकादशी का व्रत करने से जीवन के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं।
- मोक्ष की प्राप्ति: यह व्रत मृत्यु के बाद भगवान विष्णु के धाम की ओर ले जाता है।
- स्वास्थ्य लाभ: उपवास से शरीर विषाक्त पदार्थों से मुक्त होता है, जिससे स्वास्थ्य में सुधार होता है।
- स्वर्ग की प्राप्ति: इस व्रत से यमदूत नहीं, भगवान विष्णु के दूत पुष्पक विमान से व्यक्ति स्वर्ग जाता है।
- 24 एकादशियों का फल: जो भक्त सालभर व्रत नहीं कर पाते, वे केवल निर्जला एकादशी का व्रत कर पूरे वर्ष का फल प्राप्त कर सकते हैं।
- धन और समृद्धि: इस दिन दान करने से घर में धन और समृद्धि का आगमन होता है।
- आध्यात्मिक उन्नति: भगवान विष्णु की आराधना से आत्मिक शांति और आध्यात्मिक प्रगति होती है।
इन लाभों का अनुभव करने के लिए व्रत और दान का महत्व समझें और इसे अपनाएं।
पांडव और भीमसेन एकादशी क्या है
भीमसेन, जो पांडवों में सबसे बलशाली थे, अपनी अत्यधिक भूख के कारण सभी एकादशियों का व्रत नहीं कर पाते थे। उनकी यह समस्या व्यास जी ने समझी और उन्हें एक सरल उपाय बताया।
व्यास जी ने भीमसेन से कहा कि अगर वे साल में केवल निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) का व्रत करेंगे, तो इसका पुण्य पूरे वर्ष की सभी एकादशियों के व्रत के बराबर होगा। इस व्रत में अन्न और जल का पूरी तरह त्याग करना अनिवार्य है।
भीमसेन ने इस व्रत को स्वीकार कर धर्म का पालन किया। इसी कारण यह एकादशी भीमसेनी एकादशी या पांडव एकादशी के नाम से प्रसिद्ध हुई।
निर्जला एकादशी और अन्य एकादशियों में अंतर
- उपवास का तरीका:
निर्जला एकादशी में जल और भोजन पूरी तरह त्याग दिया जाता है, जबकि अन्य एकादशियों में फल, दूध और पानी का सेवन किया जा सकता है। - व्रत की कठिनाई:
निर्जला एकादशी सबसे कठिन मानी जाती है क्योंकि इसमें बिना जल और भोजन के रहना होता है। अन्य एकादशियां अपेक्षाकृत आसान होती हैं। - पुण्य का फल:
निर्जला एकादशी के व्रत से 24 एकादशियों का पुण्य मिलता है। अन्य एकादशियों का पुण्य केवल उस दिन के लिए होता है। - व्रत की अवधि:
निर्जला एकादशी वर्ष में केवल एक बार (ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी) आती है, जबकि अन्य एकादशियां साल में 23 बार होती हैं। - नाम और महत्व:
निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी या पांडव एकादशी भी कहते हैं। अन्य एकादशियों के नाम उनके विशेष महत्व के अनुसार होते हैं। - दान और सेवा:
इस दिन जल, वस्त्र, छाता और घड़े का दान करना बहुत शुभ माना जाता है। अन्य एकादशियों पर सामान्य दान का महत्व होता है। - शास्त्रों में मान्यता:
निर्जला एकादशी को सर्वोच्च एकादशी माना गया है, जबकि अन्य एकादशियां अलग-अलग मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए मनाई जाती हैं। - रात्रि जागरण:
निर्जला एकादशी पर भजन-कीर्तन के साथ रातभर जागरण करना अनिवार्य होता है। अन्य एकादशियों में यह वैकल्पिक है। - व्रत का उद्देश्य:
निर्जला एकादशी का उद्देश्य 24 एकादशियों का पुण्य अर्जित करना है। अन्य एकादशियां पापों के नाश और इच्छाओं की पूर्ति के लिए की जाती हैं।
यह विशेष व्रत 25 जून 2025 को है। इस दिन व्रत रखने और दान करने से अद्वितीय पुण्य और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
निष्कर्ष
निर्जला एकादशी का व्रत हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण माना गया है। इस दिन जल और अन्न का त्याग कर भगवान विष्णु की आराधना करने से 24 एकादशियों के बराबर पुण्य फल प्राप्त होता है। यहां तक कि भीमसेन जैसे भोजन प्रेमी भी इस व्रत को निभाने में सफल हुए थे। इस व्रत का पालन करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।